आत्मानुभूति तो आज भी है, हम सबको है पर अशुद्ध-आत्मा की है ।
जैसे काली मिर्च का स्वाद ठंडाई में ।
आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी
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आत्मा-जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन,सुख आदि गुणों के वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है। यह भी तीन प्रकार की है बहिरात्मा,अन्तरात्मा और परमात्मा। अतः उक्त कथन सत्य है कि आत्मानुभूति तो आज भी है,हम सबको है पर अशुद्ध आत्मा की है जैसे कालीमिर्च का स्वाद ठंडाई में। अतः इसका मतलब आत्मा अशुद्व होने के कारण उससे आत्मानुभूति नहीं हो सकती है।
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आत्मा-जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन,सुख आदि गुणों के वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है। यह भी तीन प्रकार की है बहिरात्मा,अन्तरात्मा और परमात्मा। अतः उक्त कथन सत्य है कि आत्मानुभूति तो आज भी है,हम सबको है पर अशुद्ध आत्मा की है जैसे कालीमिर्च का स्वाद ठंडाई में। अतः इसका मतलब आत्मा अशुद्व होने के कारण उससे आत्मानुभूति नहीं हो सकती है।