क्या आत्मा इतनी कमजोर है कि दुर्घटना होने पर/शरीर टूटने पर निकल जाती है ?
क्या राजा टूटी फूटी कुर्सी पर बैठेगा !!
मुनि श्री सुधासागर जी
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आत्मा—जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणो में वर्तता या परिणमन करता है।
शरीर—अनन्तानन्त पुदगलो के समवाय का नाम है।विशेष नाम कर्म के उदय से प़ाप्त होकर निरन्तर जीर्णशीर्ण होता है एवं गलता रहता है वह शरीर है।
आत्मा का स्वरुप जो वस्तु में निहित होता है एवं निर्विकार होता है।प़त्येक जीव मे आत्मा होती है लेकिन शरीर में सांसे समाप्त होने पर ही आत्मा कर्मो के आधार पर किसी अन्य शरीर में पहुचती है।
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आत्मा—जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणो में वर्तता या परिणमन करता है।
शरीर—अनन्तानन्त पुदगलो के समवाय का नाम है।विशेष नाम कर्म के उदय से प़ाप्त होकर निरन्तर जीर्णशीर्ण होता है एवं गलता रहता है वह शरीर है।
आत्मा का स्वरुप जो वस्तु में निहित होता है एवं निर्विकार होता है।प़त्येक जीव मे आत्मा होती है लेकिन शरीर में सांसे समाप्त होने पर ही आत्मा कर्मो के आधार पर किसी अन्य शरीर में पहुचती है।