आहार
कर्म वर्गणाएं/ आहार जीव के लिये हर जगह उपलब्ध हैं, ग्रहण भी करता रहता है (हवा/ पानी), उससे शक्ति भी आती है।
कवलाहार तो अतिरिक्त शक्ति के लिये है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा – 587)
कर्म वर्गणाएं/ आहार जीव के लिये हर जगह उपलब्ध हैं, ग्रहण भी करता रहता है (हवा/ पानी), उससे शक्ति भी आती है।
कवलाहार तो अतिरिक्त शक्ति के लिये है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड गाथा – 587)