उत्तम आकिंचन्य धर्म

आकिंचन्य यानी किंचित भी मेरा नहीं। सत्य को सत्य स्वीकारना।
इसमें कुछ करना नहीं है। राग द्वेष से मुक्ति का नाम आकिंचन्य है।
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ज्यों की त्यों धरदीनी चुनरिया। वसुधैव कुटुम्बकम् के भाव…
1) सब मेरा ही तो विस्तार है, चाहे इस जन्म का या पिछलों का
2) क्या लेके आया था क्या लेके जाउँगा ! शरीर भी मैंने यहीं आकर माँ के पेट में बनाया था। जो आज मेरा है कल किसी और का हो जायेगा तो चुनरिया मैली करने का हक मुझे नहीं।
मेरे होने का अर्थ है कि मैं कुछ हूँ नहीं।
उम्रे दराज़ मांग कर लाये थे चार दिन, दो आरज़ू में कट गये दो इंतज़ार में, बचा आकिंचन्य।

मुनि श्री मंगलानंद सागर जी
ब्र.डॉ नीलेश भैया

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4 Responses

  1. मुनि श्री मंगलानंद महाराज जी ने उत्तम आकिंचन धर्म का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः पूर्ण परिग्रह अन्दर एवं बाहर का त्याग करने से ,अपना कुछ नहीं है, सिर्फ अपनी आत्मा ही लीन रहना है।

    1. नयी चुनरिया(जीवन) ली, उसे बिना दाग(पाप) लगे रखना।

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