उदारतापूर्ण विवेक
एक कलैक्टर ने महाराज जी से साम्प्रदायिक/राजनैतिक समस्याओं के लिये दिशा-निर्देश मांगा।
महाराजा रणजीत सिंह का संस्मरण सुनाया – ताज़िया ऊंचा था, बरगद की शाखा अड़ रही थी। दोनों सम्प्रदायों के लोग आमने-सामने आ गये।
राजा ने गड्ढा खुदवाया, ताज़िया गड्ढे में से निकल गया, शाखा भी नहीं काटनी पड़ी।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
One Response
जैन धर्म में उदारता एवं विवेक का महत्वपूर्ण स्थान है। अतः मुनि श्री प़माण सागर महाराज जी का कथन सत्य है कि ज़िन्दगी में कोई परेशानी या दुविधा हो उस समय उदारतापूर्ण विवेक से काम लेना चाहिए जैसे महाराजा रणजीत ने निर्णय लिया था।