ऊर्जा
देवता थोड़ा सा ग्रहण करके लम्बी अवधि तक शरीर को चलाते हैं,
भगवान बिना खाने पिये वातावरण से नोकर्म वर्गणायें ग्रहण करके।
मनुष्य/ तिर्यंच थोड़ी सी नोकर्म वर्गणायें ग्रहण करके, बहुत सा कवलाहार करते हैं।
अंतर का कारण ?
अपनी-अपनी ऊर्जा की शक्ति ज्यादा/ कम होने से।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/8)
One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने ऊर्जा को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए ऊर्जा रखना परम आवश्यक है।