कर्तादि
अहंकार मिथ्या है, क्योंकि सामने वाले का तिरस्कार उसके कर्मों के अनुसार ही होगा।
ममकार –> मेरा कुछ है ही नहीं, फिर भी अपना मानना… मिथ्यात्व।
भोक्तृत्व में कर्तापना आजाता है।
अहम्, ममत्व तथा कर्तृत्व का निषेध नहीं, क्योंकि मैं अपने भावों का कर्ता हूँ न! बस पर-पदार्थ का कर्ता नहीं। अहम् आदि तो सत् हैं; असत् का निषेध है।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
One Response
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने कर्तादि को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।