कर्म-फल
फल एक बार ही स्वाद (खट्टा या मीठा) देता है,
कर्म भी एक बार फल देकर झर जाते हैं ।
(चाहे जैसा का तैसा/ खट्टा खा लो,
या
समता/ ज्ञान की चाशनी के साथ मीठा खाओ)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
फल एक बार ही स्वाद (खट्टा या मीठा) देता है,
कर्म भी एक बार फल देकर झर जाते हैं ।
(चाहे जैसा का तैसा/ खट्टा खा लो,
या
समता/ ज्ञान की चाशनी के साथ मीठा खाओ)
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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कर्म का मतलब जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब उसकी क़िया या कर्म है। कर्म के द्वारा ही जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है। कर्म भी तीन प्रकार के होते हैं, द़व्य कर्म,भाव कर्म और नो कर्म।
कर्म फल– ऐसा अनुभव करना कि इसे भोगता हूं, वह होता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि फल एक बार स्वाद यानी खट्टा या मीठा देता है, जबकि कर्म भी एक बार फल देकर झर जाते हैं यानी चाहे जैसा या खट्टा खा लो,या समता एवं ज्ञान की चाशनी के साथ मीठा खाओ।