सबसे हल्के कर्म राग से बंधते हैं,
मध्यम द्वेष से,
सबसे ज्यादा मोह से (तीव्रता की अपेक्षा) ।
शुद्ध-भाव निर्बंध होते हैं ।
श्री समयसार जी – पेज – 169
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4 Responses
कर्म- – जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब क़िया या कर्म है।
बंध- – कर्म का आत्मा के साथ एकक्षेत्रावगाह होना बंध कहलाता है, यह भी दो प्रकार के होते हैं भाव बंध और द़व्य बंध।
अतः यह कथन सत्य है कि राग द्वेष और मोह के कारण कर्म बंध होते हैं जिसमें राग सबसे हल्के बंध होते हैं,द्वेष में मध्यम होते हैं जबकि मोह से तीव्रता होती है। शुद्व भाव निर्बंध होते हैं। जीवन में शुद्व भाव होना चाहिए ताकि कर्म का बंध न हो सके, तभी जीवन का कल्याण हो सकता है।
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कर्म- – जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब क़िया या कर्म है।
बंध- – कर्म का आत्मा के साथ एकक्षेत्रावगाह होना बंध कहलाता है, यह भी दो प्रकार के होते हैं भाव बंध और द़व्य बंध।
अतः यह कथन सत्य है कि राग द्वेष और मोह के कारण कर्म बंध होते हैं जिसमें राग सबसे हल्के बंध होते हैं,द्वेष में मध्यम होते हैं जबकि मोह से तीव्रता होती है। शुद्व भाव निर्बंध होते हैं। जीवन में शुद्व भाव होना चाहिए ताकि कर्म का बंध न हो सके, तभी जीवन का कल्याण हो सकता है।
“निर्बंध” means “Bandh-rahit” , na?
हाँ ।
Okay.