केवलज्ञान
केवलज्ञान अनादि-निधन होता है,
पूर्ण होता है,
इसलिये तीर्थंकरों के सिद्धांतों में अंतर नहीं होता,
सो दिव्य-ध्वनि भी अनादि-निधन हुई।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
केवलज्ञान अनादि-निधन होता है,
पूर्ण होता है,
इसलिये तीर्थंकरों के सिद्धांतों में अंतर नहीं होता,
सो दिव्य-ध्वनि भी अनादि-निधन हुई।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी