कहते हैं – “जैसी गति, वैसी मति”
पर गति-बंध होने के बाद मति, पूरी तरफ वैसी नहीं हो जाती ।
जैसे श्रेणिक ने नरक-गति बंधने के बाद भी क्षायिक सम्यग्दर्शन तथा तीर्थंकर प्रकृति बाँध ली ।
मुनि श्री सुधासागर जी
Share this on...
One Response
मति का मतलब इन्द्रिय और मन की सहायता से होने वाले ज्ञान मति ज्ञान है ।
जिस कर्म के उदय से जीव मनुष्य,तिर्यंच,देव और नारकीय को प्राप्त करता उसे गति कर्म कहते हैं, इसमें चार गतियां होती हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि जैसी गति,वैसी मति होती हैं पर गति बंध होने के बाद मति,पूरी तरह वैसी नहीं हो जाती है। जैसे श्रेणिक ने नरक-गति बंधने के बाद भी क्षायिक सम्यकदर्शन तथा तीर्थंकर प़कृति बांध ली थी।
One Response
मति का मतलब इन्द्रिय और मन की सहायता से होने वाले ज्ञान मति ज्ञान है ।
जिस कर्म के उदय से जीव मनुष्य,तिर्यंच,देव और नारकीय को प्राप्त करता उसे गति कर्म कहते हैं, इसमें चार गतियां होती हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि जैसी गति,वैसी मति होती हैं पर गति बंध होने के बाद मति,पूरी तरह वैसी नहीं हो जाती है। जैसे श्रेणिक ने नरक-गति बंधने के बाद भी क्षायिक सम्यकदर्शन तथा तीर्थंकर प़कृति बांध ली थी।