तीर्थंकर बनने की भावना से ज्यादा उनके गुणों की भावना/ चिंतवन से विशुद्धि तथा तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो सकता है।
ज्ञान से ज्यादा ज्ञान की भावना महत्व्पूर्ण होती है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने गुणों की भावना का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए भगवान् के गुणों की भावना करके पालन करने का प़यास करना चाहिए।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने गुणों की भावना का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए भगवान् के गुणों की भावना करके पालन करने का प़यास करना चाहिए।