गुप्ति

1. अप्रिय/व्यंग्यवाणी/असत्य बोलने से रोकती है।
2. प्रवृत्ति में भाषा-समिति के साथ/छन्ना लगाकर/हित, मित, प्रिय बोल।
3. निवृत्ति – बोलना ही नहीं।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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4 Responses

  1. गुप्ति का मतलब संसार के कारण भूत रागादि से जो आत्मा को बचाये, अथवा सम्यक प़कार से योगों का निग्रह करना,मन वचन काय की स्वछंद प्रवृत्ति रोकना भी होता है।यह तीन प़कार की होती है,मनो गुप्ति,वचन गुप्ति एवं काय गुप्ति। अतः मुनि महाराज ने दिया है वह पूर्ण सत्य है। उपरोक्त गुप्तिओ को साधुओं को धारण करना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।

    1. व्यंग्यवाणी।
      वाणी पर छन्ना(filter) ताकि हित, मित, प्रिय ही निकले।

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