चल/अचल प्रदेश
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जीव तथा पुद्गल के प्रदेश स्थिर नहीं होते। जीव में 8 अचल प्रदेश होते हैं; हालाँकि स्पंदन तो होता है, Circulation नहीं। चल चल ही रहता है, अचल अचल ही। क्रोध, पीड़ादि में चल प्रदेशों की गति तेज़ हो जाती है। इससे कर्मबंध ज्यादा होने लगता है। ये प्रदेश विग्रह गति में भी चलायमान रहते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/8)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने चल, अचत प्रदेश को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।