जलकाय
- प्रासुक जल करने में आरंभिक हिंसा स्थावर जीवों की है, जो श्रावक हर क्रिया (भोजनादि) में करता ही रहता है ।
पर श्रावक हिंसा करने के भाव से यह क्रिया नहीं करता । - प्रासुक जल में अगले 24 घंटे तक त्रस जीव पैदा नहीं होते ।
‘सावद्य लेषो, बहु पुण्य राशो’ यानि पाप कम, पुण्य ज्यादा (उत्तम पात्र के रत्नत्रय में सहायक) । - प्रासुक जल कलेवर (मांसादि) नहीं पुदगल है ।
(प्रवचनसार गाथा – 179) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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उक्त कथन सत्य है,जिसका उदाहरण दिया गया है। श्रावकों को भी जल की मर्यादा का पालन करना आवश्यक है। जल वर्षात का उपयोग करना चाहिए। यदि बरसात का नहीं मिलता है तो कमसे कम प़ासुक जल लेना आवश्यक है, उक्त जल 24 घंटे तक उपयोग कर सकते हो।