आत्मा – जो ज्ञान/दर्शन से पहचाना जाता है,
जीव – सिद्धांत ग्रंथों में प्रयोग होता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणों में वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है।
जीव—जो जानता और देखता है उसे जीव कहते हैं या जिसमें चेतना है वह जीव है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि आत्मा जो ज्ञान और दर्शन से पहचाना जाता है।जीव जो सिद्धांत ग़ंथो में प़योग होता है।
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जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणों में वर्तता या परिणमन करता है वह आत्मा है।
जीव—जो जानता और देखता है उसे जीव कहते हैं या जिसमें चेतना है वह जीव है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि आत्मा जो ज्ञान और दर्शन से पहचाना जाता है।जीव जो सिद्धांत ग़ंथो में प़योग होता है।