“ज्ञानावरणे प्रज्ञा-अप्रज्ञाने”

ज्ञानावरण के सद्भाव में व अन्य कर्मों के सद्भाव में भी, ज्ञानावरण के क्षयोपशम से जो ज्ञान प्रकट होता है, वह प्रज्ञा है, जो प्रकट नहीं वह अज्ञान।
प्रज्ञा व अज्ञान दोनों एक साथ भी प्रकट होते हैं जैसे मति, श्रुत प्रकट हैं, अवधि/मन:पर्यय अप्रकट/अज्ञान।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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6 Responses

    1. यहाँ पर क्षयोपशम ज्ञान की बात हो रही है जबकि केवलज्ञान तो क्षायिक होता है।

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