अज्ञानी – विपत्तियों में पापोदय का रोना।
ज्ञानी – विपत्तियों को पाप कर्मों की निर्जरा मानकर संतुष्ट।
मुनि श्री सुधासागर जी
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मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि अज्ञानी होता है,वह विपत्ति में पापोदय का रोना रोता है, जबकि ज्ञानी विपत्तियों को पाप कर्मों की निर्जरा मानकर सन्तुष्ट हो जाता है। ज्ञानी सभी दुःख, सुख में समता का भाव रखता है यह भी कर्म कटने का उपाय है।
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मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि अज्ञानी होता है,वह विपत्ति में पापोदय का रोना रोता है, जबकि ज्ञानी विपत्तियों को पाप कर्मों की निर्जरा मानकर सन्तुष्ट हो जाता है। ज्ञानी सभी दुःख, सुख में समता का भाव रखता है यह भी कर्म कटने का उपाय है।