1. प्रारम्भिक अवस्था… इष्ट/ अनिष्ट को जानना
2. मध्यम… इष्ट को ग्रहण/ अनिष्ट को छोड़ना
3. अंतिम अवस्था… तटस्थ रहना/ बाहरी ज्ञेय से हट कर स्वयं को ज्ञेय बनाना।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तित्थयर भावणा- गाथा 27)
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4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने ज्ञानोपयोग का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः ज्ञानोपयोग में बाहरी ज्ञेय से हटकर स्वयं को ज्ञेय बनाना है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने ज्ञानोपयोग का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः ज्ञानोपयोग में बाहरी ज्ञेय से हटकर स्वयं को ज्ञेय बनाना है।
‘इष्ट को ग्रहण/ अनिष्ट को छोड़ना’ , yeh kya ‘madhyam’ avastha hai ? Agar aisa hai, to ise bhi spasht karen, please ?
स्पष्ट कर दिया।
Okay.