ज्ञान अच्छे-बुरे, इष्ट-अनिष्ट, संकल्प-विकल्प के साथ परिणमन नहीं करता ।
इसीलिये असली ज्ञान तो वीतराग-विज्ञान है ।
वीतराग-संवेदन ज्ञान से ही मुक्ति बाकि सब संसारियों के तो स्व-संवेदन ज्ञान ही होता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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4 Responses
वीतराग- – आत्मसाधना के द्वारा जिन्होंने राग द्वेष को नष्ट कर दिया है उन्हें वीतराग कहते हैं।
सम्यकज्ञान- – सम्यग्दर्शन के साथ होने वाले यथार्थ या समीचीन ज्ञान को कहते हैं। सम्यग्दर्शन- – सच्चे देव शास्त्र और गुरु के प्रति श्रद्वान को कहते हैं। स्वपर का भेद विज्ञान होना होता है।
अतः यह कथन सत्य है कि ज्ञान अच्छे बुरे,इष्ट अनिष्ट, संकल्प विकल्प के साथ परिणमन नहीं करता है। इसलिए असली ज्ञान तो वीतराग विज्ञान है। अतः वीतराग संवेदन ज्ञान से ही मुक्ती बाकी सब संसारियो को तो स्वयं संवेदन ज्ञान ही होता है।
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वीतराग- – आत्मसाधना के द्वारा जिन्होंने राग द्वेष को नष्ट कर दिया है उन्हें वीतराग कहते हैं।
सम्यकज्ञान- – सम्यग्दर्शन के साथ होने वाले यथार्थ या समीचीन ज्ञान को कहते हैं। सम्यग्दर्शन- – सच्चे देव शास्त्र और गुरु के प्रति श्रद्वान को कहते हैं। स्वपर का भेद विज्ञान होना होता है।
अतः यह कथन सत्य है कि ज्ञान अच्छे बुरे,इष्ट अनिष्ट, संकल्प विकल्प के साथ परिणमन नहीं करता है। इसलिए असली ज्ञान तो वीतराग विज्ञान है। अतः वीतराग संवेदन ज्ञान से ही मुक्ती बाकी सब संसारियो को तो स्वयं संवेदन ज्ञान ही होता है।
“स्व-संवेदन ज्ञान” ka kya meaning hai?
स्व-संवेदन – अपने और अपनों के बारे में संवेदनशीलता ।
Okay.