ज्योतिष्क देव मेरूओं की परिक्रमा नहीं करते ।
वे तो अपनी अपनी कक्षाओं में चलते रहते हैं ।
धातकी खंड तथा पुष्करार्ध में तो मेरूओं के इर्दगिर्द भी नहीं घूमते दिखते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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ज्योतिष्क-देव—ज्योतिमर्य अर्थात सदा प़काशमान होने से सूर्य, चन्द़ आदि देव हैं, इनमे चन्द़मा प़ुमुख है, इसलिये प़त्येक चन्द़मा के परिवार में एक एक सूर्य आदि होते हैं।
ज्योतिष्क देव मेरुऔं की परिक़मा नही करते हैं, वे तो अपनी कक्षाऔं में चलते रहते हैं।घातकी खंड़ तथा पुष्कराध में तो मेरुऔं के इर्द गिर्द भी नही घूमते हैं।मनुष्य लोक के भीतर ज्योतिष्क-देवों के विमान निरन्तर भ़मण करते हैं और उसके बाहर स्थित है।
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ज्योतिष्क-देव—ज्योतिमर्य अर्थात सदा प़काशमान होने से सूर्य, चन्द़ आदि देव हैं, इनमे चन्द़मा प़ुमुख है, इसलिये प़त्येक चन्द़मा के परिवार में एक एक सूर्य आदि होते हैं।
ज्योतिष्क देव मेरुऔं की परिक़मा नही करते हैं, वे तो अपनी कक्षाऔं में चलते रहते हैं।घातकी खंड़ तथा पुष्कराध में तो मेरुऔं के इर्द गिर्द भी नही घूमते हैं।मनुष्य लोक के भीतर ज्योतिष्क-देवों के विमान निरन्तर भ़मण करते हैं और उसके बाहर स्थित है।