अविरत सम्यग्दृष्टि का तप भी महान उपकारी नहीं होता है । क्योंकि वह मोक्ष नहीं दिला सकता है । मिथ्यादृष्टि कुतप से 12 वें स्वर्ग तक ही जा सकता है, *सुतप से ग्रेवियक तक । (*सुतप-सुशास्त्रों में लिखित, विधि के अनुसार)
मुनि श्री सुधासागर जी
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