तीर्थकर प्रकृति बंध
तीर्थंकर प्रकृति बंध चौथे से सातवें गुणस्थान में (जब पहली बार बंधती है)।
यह प्रथमोपशम, द्वितीयोपशम, क्षयोपशम या क्षायिक सम्यग्दृष्टि के बंधती है।
एक बार बंधने (शुरु होने) के बाद, आठवें गुणस्थान के छठे भाग तक बंधती रहती है।
उदय… तेरहवें, चौदहवें गुणस्थान में होता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 6/24)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने तीर्थंकर प़कृति बंध का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।