दर्शन/चारित्र विनय

दर्शन यानि सम्यग्दर्शन।
अपने दर्शन की विनय = सम्यग्दर्शन को जानने की जिज्ञासा,          8अंगादि को जानने की तथा सम्यग्दर्शन पाने के भाव।
चारित्र-विनय – चारित्रवानों की विनय तथा पाने के भाव। मुनिराज नित्य पांचों प्रकार के चारित्रों को प्रणाम करते हैं, पंचम चारित्र पाने के लिये।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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3 Responses

  1. ‘मुनिराज नित्य पांचों प्रकार के चारित्रों को प्रणाम करते हैं, पंचम चारित्र पाने के लिये।’ Can meaning of this line be explained, please ?

    1. सामायिकादि चारित्रों का पालन पंचम चारित्र(यथाख्यात) पाना ही तो है !

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