दान
अमरकंटक प्रवास के दौरान एक युवक भारी घाटा होने से आत्मघात करने जा रहा था।
उसे आचार्य श्री विद्यासागर जी से संबोधन दिलवाया –
आचार्य श्री – “दान करो”
उसकी जेब में 500रुपये थे, उसने पूरे दान कर दिये।
समाज वालों ने नौकरी दी, Partner बनाया।
एक-डेढ़ साल में सब Loan उतर गया, वरना धर्म परिवर्तन के प्रलोभन तक में आ चुका था।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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दान का तात्पर्य परोपकार की भावना से अपनी वस्तु का अर्पण करना होता है।दान चार प्रकार होते हैं, आहार दान, औषधि दान,उपकरण या ज्ञान दान एवं अभय दान। अतः मुनि श्री प़माण सागर महाराज जी ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। उपरोक्त उदाहरण मुनि महाराज जी ने प़वचन में उल्लेख किया गया था।।दान के द्वारा पुण्य का फल मिलता है। अतः अपने कल्याण के लिए दान प़दान करना परम आवश्यक है।