दिव्य-दृष्टि
द्रोणगिर में हम 4-5 बहनों के आचार्य श्री विद्यासागर जी के प्रथम दर्शन के समय, मैने आ. श्री से कुछ व्रत/नियम के लिये प्रार्थना की।
आचार्य श्री ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखकर कहा – आर्यिका (साध्वी) बनो।
शुरुआत कहाँ से करुँ ?
चल-चित्र देखती हो ?
कभी-कभी।
देखना बंद कर दो।
दूसरे दर्शन में व्रत मांगने पर – तत्त्वार्थ सूत्र के उपवास करो।
विधि ?
पंडित पन्नालाल सागर वालों से समझ लेना (उन्हें कैसे पता कि मैं सागर की हूँ और उन्हीं पंड़ित जी से पढ़ती हूँ !)
आर्यिका श्री दृढमति माताजी
One Response
दिव्य द्वष्टि तो आचार्य को होती है,जो दिगम्बर एवं रत्नत्रय धारी को ही प्राप्त होती है।
अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।