देवता मुनि को आहार दान क्यों नहीं देते हैं ?
वे आहार दान ला सकते हैं, बना भी सकते हैं, पर वे खुद के लिये आहार बनाते नहीं, सो उद्दिष्ट और अतिथिसंविभाग का पालन नहीं कर सकते हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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देव- – जो सदा परम सुख में लीन रहते हैं।वह सदा इन्द़िय सुखों में लीन रहते हैं वे भी देव कहलाते हैं। देवता खुद के लिए आहार नहीं बनाते हैं।
आहार- – श्रद्वा-भक्ति पूर्वक प़ासुक अन्न आदि आहार सुपात्र को देना आहार दान कहलाता है।
अतः देवता आहार नहीं बनाते हैं सो उद्दिष्ट और अतिथि संविभाग का पालन नहीं कर सकते हैं इसलिए उनको आहार देने की पात्रता नहीं होती है।
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देव- – जो सदा परम सुख में लीन रहते हैं।वह सदा इन्द़िय सुखों में लीन रहते हैं वे भी देव कहलाते हैं। देवता खुद के लिए आहार नहीं बनाते हैं।
आहार- – श्रद्वा-भक्ति पूर्वक प़ासुक अन्न आदि आहार सुपात्र को देना आहार दान कहलाता है।
अतः देवता आहार नहीं बनाते हैं सो उद्दिष्ट और अतिथि संविभाग का पालन नहीं कर सकते हैं इसलिए उनको आहार देने की पात्रता नहीं होती है।