देवों में प्रमाद

1. चौथे गुणस्थान से ऊपर नहीं जाते ।
2. जब जो चाहिये, तुरंत मिलना चाहिये ।
(प्रायः मिल भी जाता है)

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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6 Responses

  1. प़माद—अच्छे कार्यो के करने में आदर भाव का न होना कहलाता है।देवों का जीवन आरामदायक है, जब जो चाहिए वह प़ाप्त हो जाता है लेकिन उनके प़माद के कारण चौथे गुणस्थान से ऊपर नहीं जा पाते हैं।

  2. To kya Devon mein “Pramaad” bhi ek kaaran hota hai, unke upar waale gunasthanon mein na jaane ke liye?

    1. मुख्यतया पर्याय कारण,
      पर पुरुषार्थ को भी भुला नहीं सकते, इसी के बल से तो वे अगले भव में कोई एक इंद्रिय और कोई मनुष्य बनते हैं ।

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