धन्य-तेरस
जब भगवान की तीर्थंकर-प्रकृति की उदीरणा होना बंद हो जाती है तब भगवान योगनिरोध करने के लिए समवसरण छोड़ देते हैं।
उस समय देवता रत्नों की वर्षा करते हैं। लोग उन रत्नों को पाकर धन्य हो जाते हैं। इसलिये इस तेरस को धन्य-तेरस कहते हैं।
मुनि श्री सुधासागर जी
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मुनि श्री सुधसागर महाराज जी का कथन सत्य है कि इस तेरस को धन्य तेरस कहकर मनाना चाहिए।