धर्म……….क्रियात्मक (मुख्यता से),
अध्यात्म… भावात्मक।
लेकिन धर्म की क्रियाओं को भावों के साथ करेंगे तभी भावात्मक अध्यात्म जीवन में आयेगा।
चिंतन
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चिंतन में धर्म एवं अध्यात्म की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में अध्यात्म का भाव होना चाहिए ताकि क़ियाऔ का फल मिल सकता है। जैन धर्म भावों की प़मुखता का आधार है।
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चिंतन में धर्म एवं अध्यात्म की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में अध्यात्म का भाव होना चाहिए ताकि क़ियाऔ का फल मिल सकता है। जैन धर्म भावों की प़मुखता का आधार है।