धर्म

धर्म में फायदा हो या ना हो, पर घाटा कभी नहीं होता ।
यह उपवन है यहां मन कभी नहीं लगाना पड़ता ।

आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी

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  1. आज दस-लक्षण का 3rd दिन ‘उत्तम आर्जव’ -मायाचारी का उल्टा यानी सरलता – Supreme Simplicity

    उत्तम आर्जव धर्मं !! ऋजुभावं आर्जवं – ऋजु मतलब सीधा और सरल भाव, मायाचारी रहित, जैसा मन में विचार हो अभिप्राय हो वैसे ही बाहर भी हो…मन, वचन और काया से एक सा हो जाना, व्यक्ति अन्दर से कुछ होता है और बहार से कुछ…आज कल तो दिखावा बहुत ज्यादा हो गया है…जीवन में उलझनें दिखावे और आडम्बर की वजह से हैं..अन्दर से कुछ और बहार से कुछ और…हर तरफ दिखावा…ये दिखावा शांति -मार्ग में सबसे बड़ा शत्रु है..जिसमे दुसरे को नीचा दिखाने की भावना रहती है..और दुसरो को प्रभावित करने के मानसिक सोच रहती है..रे बंधू ये दो दिन में विनाश जाएगी..इस सांसारिक नाम-ख्याति को छोड़ दे और भव भव में शांति देने वाली…सरल स्वभाव को ग्रहण कर…और हो जा आर्जव यानी सरल स्वभावी और निष्कपट हो जाना ! चिन्तन कुछ फिर संभाषण कुछ, वृत्ति कुछ की कुछ होती है ! स्थिरता निज में प्रभु पाऊं जो, अंतर का कालुश धोती है ![Written as per “शांति पथ प्रदर्शन – जिनेन्द्र वर्णी”]

    कपट से हानि –
    1. अविश्वसनीयता।
    2. कभी ना कभी पकड़े जाते हैं और फिर ज़िंदगी नरक बन जाती है ।
    3. शास्त्रानुसार अगले जन्म में जानवर बनते हैं ।

    जीवन से कपट कैसे दूर करें ?
    1.स्पष्टवादी बनें । मन में होय सो वचन उचरिये, वचन होय सो तन सो करिये ।
    2. जीवन में सादगी लायें, अपनी आवश्यकतायें कम करें ।
    3. आत्मचिंतन करें – आत्मा का रूप शुद्ध है ।
    4. अच्छे शास्त्रों का अध्ययन करने की आदत डालें ।
    5. अपनी संगति ऐसे लोगों से रखें जो भौतिकवाद की दौड़ में ना हों ।

    Source – पं. रतनलाल बैनाड़ा जी – पाठ्शाला (पारस चैनल) – Thanks to him

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