ध्यान तो कोई शुद्ध नहीं, पर आर्त/रौद्र के अभाव वाले ध्यान को शुद्ध कह दिया ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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ध्यान–चित्त की एकाग्रता का नाम ध्यान है।यह चार प्रकार के होते हैं जिसमें आर्तध्यान और रौद़ध्यान संसार को बढ़ाने होते हैं जो अशुभ है,धर्मध्यान व शुक्ल ध्यान मोक्ष प्राप्ति में सहायक होने से शुभध्यान कहते हैं।
उक्त कथन सत्य है कि ध्यान तो कोई शुद्ध नहीं पर आर्त और रौद़ के अभाव वाले ध्यान को शुद्व कह दिया गया है।
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ध्यान–चित्त की एकाग्रता का नाम ध्यान है।यह चार प्रकार के होते हैं जिसमें आर्तध्यान और रौद़ध्यान संसार को बढ़ाने होते हैं जो अशुभ है,धर्मध्यान व शुक्ल ध्यान मोक्ष प्राप्ति में सहायक होने से शुभध्यान कहते हैं।
उक्त कथन सत्य है कि ध्यान तो कोई शुद्ध नहीं पर आर्त और रौद़ के अभाव वाले ध्यान को शुद्व कह दिया गया है।