तुलसी कृत रामायण में राम को विनम्र कहा, लक्ष्मण को नम्र।
नम्रता दूसरों से/ बाहर की स्थिति से संचालित होती है। विनम्रता स्वयं भीतर से तैयार होती है।
उत्साह के लिये आवेग भी ज़रूरी है पर उसमें सौम्यता बनी रहे, उग्रता न उतरे।
पं.विजय शंकर मेहता (अंजली)
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नम़ता एवं आवेग का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए नम़ता एवं विनम्रता को धारण करना परम आवश्यक है। आवेग में सोम्यता रहना परम आवश्यक है।
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नम़ता एवं आवेग का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए नम़ता एवं विनम्रता को धारण करना परम आवश्यक है। आवेग में सोम्यता रहना परम आवश्यक है।