नय
द्रव्यार्थिक नय –> हर द्रव्य अपने-अपने स्वभाव में है। यानी द्रव्य के स्वभाव को देखना जैसे सिद्ध भगवान अपनी अवगाहना में (यहाँ पर्यायार्थिक नय को गौण कर दिया है।)
पर्यायार्थिक नय –> शरीर कितने भोजन को अवगाहित करता है।
दोनों नयों को बराबर सम्मान देना है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/18)
4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने नय को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए नय का सम्मान रखना परम आवश्यक है।
‘पर्यायार्थिक नय –> शरीर कितने भोजन को अवगाहित करता है।’ Is sentence ka meaning thoda aur clarify karenge, please ?
पेट की अवगाहना के अनुसार भोजन ग्रहण होगा, वह भोजन की पर्याय हुई।
Okay.