“बुद्ध, वीर, जिन, हरिहर …… चित्त उसी में लीन रहो”,
इसमें विनय-मिथ्यात्व का दोष नहीं लगेगा ?
नहीं, क्योंकि नाम कुछ भी हो, ध्यान वीतरागी स्वरूप पर ही लगाना है ।
मुनि सुधासागर जी
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यह कथन सत्य है कि भगवान् का नाम कोई भी ले सकते हो लेकिन आपका ध्यान वीतरागी स्वरुप पर ही होना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।अतः आपका ध्यान वीतरागी स्वरुप पर नही होगा तो विनय मिथ्यात्व का दोष लगता है।
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यह कथन सत्य है कि भगवान् का नाम कोई भी ले सकते हो लेकिन आपका ध्यान वीतरागी स्वरुप पर ही होना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।अतः आपका ध्यान वीतरागी स्वरुप पर नही होगा तो विनय मिथ्यात्व का दोष लगता है।