निगोद से निकलने का निमित्त…. भावों में कलंक की कलुषता कम होना है क्योंकि कषायों में बिना पुरुषार्थ के हानि वृद्धि होती ही रहती है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड–गाथा- 197)
Share this on...
One Response
मुनि महाराज जी ने निगोद से निकालने के लिए जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः जीवन में भावों में कलंंक की कलुषता कम होना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
One Response
मुनि महाराज जी ने निगोद से निकालने के लिए जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः जीवन में भावों में कलंंक की कलुषता कम होना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!