निडरता
निडरता, ज्ञान (सांप नहीं है, रस्सी है) तथा श्रद्धा से (देव, गुरु, शास्त्र व कर्म सिद्धांत पर)।
भविष्य के लिये – “जो हो, सो हो”
वर्तमान में – “जो है, सो है”
उसी रूप में स्वीकृति से निडरता आती है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
निडरता, ज्ञान (सांप नहीं है, रस्सी है) तथा श्रद्धा से (देव, गुरु, शास्त्र व कर्म सिद्धांत पर)।
भविष्य के लिये – “जो हो, सो हो”
वर्तमान में – “जो है, सो है”
उसी रूप में स्वीकृति से निडरता आती है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
2 Responses
मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि निडरता सांप नहीं है, वह रस्सी है, जबकि श्रद्धा से देव, गुरु, शास्त्र व कर्म सिद्वांत पर विश्वास होना परम आवश्यक ताकि निडरता रहेगी! भविष्य के लिए जो हो, सोह हो, इसी प्रकार वर्तमान में जो है, सो है, इसी रुप में स्वीकृति से निडरता रहेगी! अतः जीवन में कर्म सिद्वांत पर विश्वास होगा तो निडरता होगी!
होना है सो होएगा
क्यों डरता है नर।
नाम प्रभु का लीजिए,
बनेगा हृदय निडर।।