भूख नहीं लगने पर दही/छाछ पिलाई जाती है, इससे पेट में वैक्टीरिया Develop हो जाते हैं ।
परम औदारिक शरीर होने पर भूख समाप्त हो जाती है क्योंकि शरीर त्रस जीवों से रहित हो जाता है ।
श्री विमल/डा. एस. एम. जैन – चिंतन
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शरीर का मतलब अनन्तानंत पुदगलो के समवाय का नाम है, अथवा जो विशेष नाम कर्म के उदय से प्राप्त होकर निरन्तर,जीर्ण होता है या गलता रहता है वह शरीर है। औदारिक,वैकिय़िक,आहारक,तैजस एवं कार्मण यह सब पांच प्रकार के होते हैं। अतः कर्म के उदय से जीव के औदारिक आदि की रचना होती हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि भूख न होने पर दही छाछ पिलाई जाती है जिससे वेक्टेरिया बन जाते हैं। लेकिन परम औदारिक शरीर होने पर भूख समाप्त हो जाती है, क्योंकि शरीर त्रस जीवों से रहित हो जाता है।
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शरीर का मतलब अनन्तानंत पुदगलो के समवाय का नाम है, अथवा जो विशेष नाम कर्म के उदय से प्राप्त होकर निरन्तर,जीर्ण होता है या गलता रहता है वह शरीर है। औदारिक,वैकिय़िक,आहारक,तैजस एवं कार्मण यह सब पांच प्रकार के होते हैं। अतः कर्म के उदय से जीव के औदारिक आदि की रचना होती हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि भूख न होने पर दही छाछ पिलाई जाती है जिससे वेक्टेरिया बन जाते हैं। लेकिन परम औदारिक शरीर होने पर भूख समाप्त हो जाती है, क्योंकि शरीर त्रस जीवों से रहित हो जाता है।