सिर्फ परीक्षा-प्रधानी के द्वारा अवहेलना की संभावना,
सिर्फ आज्ञा-प्रधानी के द्वारा अंधविश्वासी होने की संभावना।
जैन-दर्शन पहले परीक्षा फिर आज्ञा मानता है।
परीक्षा के बाद आज्ञा न मानना – मिथ्यादर्शन,
बिना परीक्षा के आज्ञा मानना भी – मिथ्यादर्शन।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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2 Responses
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने परीक्षा एवं आज्ञा प़धानी का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जैन दर्शन कहता है कि पहिले परीक्षा फिर आज्ञा पालन करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने परीक्षा एवं आज्ञा प़धानी का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जैन दर्शन कहता है कि पहिले परीक्षा फिर आज्ञा पालन करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
Bahut hi sundar explanation hai. Namostu Gurudev !