पुण्य ज्ञान की अपेक्षा – ज्ञेय,
श्रद्धा की अपेक्षा – हेय,
क्रिया की अपेक्षा – उपादेय ।
( श्रावकों की अपेक्षा, मुनियों की अपेक्षा नहीं )
पाठशाला
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पुण्य—जो आत्मा को पवित्र करता है अथवा जीव में दया, दान, पूजा आदि शुभ परिणाम को कहते हैं। हेय—जो पदार्थ छोड़ने योग्य है, वह कहलाता है। उपादेय—किसी कार्य होने में जो स्वयं उस कार्य रुप परिणाम/परिणमन करे वह उपादान कहलाता है।
अतः पुण्य ज्ञान की अपेक्षा, ज्ञेय होता है जबकि श्रद्वा की अपेक्षा,हेय है और क़िया की अपेक्षा वह उपादेय होता है।
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पुण्य—जो आत्मा को पवित्र करता है अथवा जीव में दया, दान, पूजा आदि शुभ परिणाम को कहते हैं। हेय—जो पदार्थ छोड़ने योग्य है, वह कहलाता है। उपादेय—किसी कार्य होने में जो स्वयं उस कार्य रुप परिणाम/परिणमन करे वह उपादान कहलाता है।
अतः पुण्य ज्ञान की अपेक्षा, ज्ञेय होता है जबकि श्रद्वा की अपेक्षा,हेय है और क़िया की अपेक्षा वह उपादेय होता है।