पुरूषार्थ
आजकल पुरूषार्थ व्यायाम करने वाली साइकिल जैसा है ,
चलाते चलाते, पसीना पसीना हो जाते हैं पर पहुंचते कहीं नहीं ।
मुनि श्री सौरभसागर जी
आजकल पुरूषार्थ व्यायाम करने वाली साइकिल जैसा है ,
चलाते चलाते, पसीना पसीना हो जाते हैं पर पहुंचते कहीं नहीं ।
मुनि श्री सौरभसागर जी