पूजादि
पूजा – अष्टद्रव्य (पूजा सामग्री) से भक्त्ति प्रकट करना।
आराधना – पूजा + अतिरिक्त आलम्बन से गुणों का ध्यान।
प्रार्थना – हृदय के उद्गार प्रकट करना….
मन निर्मल करने, कष्ट निवारण, कृतज्ञता प्रकट करने, सामर्थ (कष्ट सहने की) विकसित करने।
याचना – प्रार्थना + स्वार्थसिद्धि।
कामना – स्व-पर हित के लिये।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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पूजा का तात्पर्य पंचपरमेष्ठी के गुणों का चिन्तन होता है। पूजा अष्ट द़व्य से प़सन्नता पूर्वक करते हैं, जिससे आत्मा पवित्र होती है। अतः मुनि महाराज ने जो व्याख्या की गई है वह पूर्ण सत्य है।