सम्यग्दृष्टि प्रशंसा नहीं चाहता,
वह तो अपने को पापी/अज्ञानी कहकर/मानकर,
सर्वगुणवान की प्रशंसा करता है/सुनना चाहता है,
तभी वैसा बन पायेगा ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
Share this on...
One Response
उक्त कथन सत्य है कि सम्यग्दृष्टी अपनी प़शंशा नहीं चाहता है बल्कि अपने को पापी,अज्ञानी कहकर और मानकर सर्वगुणवान यानी भगवान की प़शंसा करता है और सुनना चाहता है, क्योंकि तभी वैसा बन सकता है। अतः जो धर्म पर श्रद्वान करता है, वहीं सम्यग्दृष्टी होता है।
One Response
उक्त कथन सत्य है कि सम्यग्दृष्टी अपनी प़शंशा नहीं चाहता है बल्कि अपने को पापी,अज्ञानी कहकर और मानकर सर्वगुणवान यानी भगवान की प़शंसा करता है और सुनना चाहता है, क्योंकि तभी वैसा बन सकता है। अतः जो धर्म पर श्रद्वान करता है, वहीं सम्यग्दृष्टी होता है।