भाग्य – बासी पूड़ी,
पुरुषार्थ – ताजी पूड़ी ।
आटा दोनों में same.
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4 Responses
उक्त कथन सत्य है कि भाग्य यानी कर्म बासी पूड़ी के समान है, पुरुषार्थ ताज़ी पूड़ी के समान है, जबकि आटा दोनों के समान है।
अतः जीवन में जो कर्म यानी भाग्य होता है उसे भुगतना पड़ता है लेकिन पुरुषार्थ करने पर बदला जा सकता है। जीवन में पुरुषार्थ करना आवश्यक है ताकि भाग्य बदलने में सहायक होता है।
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उक्त कथन सत्य है कि भाग्य यानी कर्म बासी पूड़ी के समान है, पुरुषार्थ ताज़ी पूड़ी के समान है, जबकि आटा दोनों के समान है।
अतः जीवन में जो कर्म यानी भाग्य होता है उसे भुगतना पड़ता है लेकिन पुरुषार्थ करने पर बदला जा सकता है। जीवन में पुरुषार्थ करना आवश्यक है ताकि भाग्य बदलने में सहायक होता है।
“आटा” ka meaning, in the above context, clarify kariye please?
भाग्य है क्या ?
पिछला पुरुषार्थ ही तो आज भाग्य कहलाता है !
Okay.