भाग्य / पुरुषार्थ
काँटा लगना पूर्व के कर्मों से (तथा वर्तमान की लापरवाही से)।
लेकिन रोना/ न रोना पुरुषार्थ का विषय।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
काँटा लगना पूर्व के कर्मों से (तथा वर्तमान की लापरवाही से)।
लेकिन रोना/ न रोना पुरुषार्थ का विषय।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
2 Responses
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने भाग्य एवं पुरुषार्थ को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए भाग्य पर निर्भर न होकर पुरुषार्थ पर ध्यान रखना परम आवश्यक है ्
Beautiful example to demonstrate the difference between ‘भाग्य’ and ‘पुरुषार्थ’ ! Namostu Gurudev !