अढ़ाई द्वीप के बाहर की भूमि में कल्पवृक्ष नहीं होते हैं क्योंकि वहाँ मनुष्य नहीं रहते हैं और तिर्यंचों को कल्पवृक्ष चाहिये नहीं ।
प्रकाश देने वाले भी नहीं होते हैं क्योंकि बहुत से सूर्यों से पूरे क्षेत्र प्रकाशित रहते हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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भोग भूमि—जहां कृषि कार्य किए बिना दस प़कार के कल्प वृक्षों से प्राप्त भोग उपयोग सामग्री के द्वारा मनुष्यों की जीविका चलती है। कल्प वृक्ष— जो जीवों को अपनी अपनी मन वांछित वस्तुएं दिया करते है ।
अतः यह कथन सत्य है कि अढ़ाई द्वीप के बाहर कल्प वृक्ष नहीं होते हैं, क्योंकि यहां मनुष्य नहीं रहते हैं और त्रियंचो को कल्प वृक्ष की आवश्यकता नहीं होती है और इसके साथ प़काश देने वाले भी नहीं होते हैं क्योंकि बहुत से सूर्यो के कारण पूरा क्षेत्र प़काशित होता रहता है।
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भोग भूमि—जहां कृषि कार्य किए बिना दस प़कार के कल्प वृक्षों से प्राप्त भोग उपयोग सामग्री के द्वारा मनुष्यों की जीविका चलती है। कल्प वृक्ष— जो जीवों को अपनी अपनी मन वांछित वस्तुएं दिया करते है ।
अतः यह कथन सत्य है कि अढ़ाई द्वीप के बाहर कल्प वृक्ष नहीं होते हैं, क्योंकि यहां मनुष्य नहीं रहते हैं और त्रियंचो को कल्प वृक्ष की आवश्यकता नहीं होती है और इसके साथ प़काश देने वाले भी नहीं होते हैं क्योंकि बहुत से सूर्यो के कारण पूरा क्षेत्र प़काशित होता रहता है।