मन
मन तो कद से बड़ा पलंग चाहता है। मिल जाने पर और-और बड़ा माँगने लगता है। पहले से ज्यादा खाली हो जाता है, हालांकि बाहर से भरा-भरा दिखाता है।
पर मन भरने पर संतोष और संतोष आने पर आत्मोत्थान शुरू हो जाता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मन तो कद से बड़ा पलंग चाहता है। मिल जाने पर और-और बड़ा माँगने लगता है। पहले से ज्यादा खाली हो जाता है, हालांकि बाहर से भरा-भरा दिखाता है।
पर मन भरने पर संतोष और संतोष आने पर आत्मोत्थान शुरू हो जाता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने मन को विस्तृत परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन का कल्याण करने के लिए मन पर नियंत्रण रखना परम आवश्यक है।