मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने मान का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में मान की अपेक्षा नहीं करना चाहिए तथा कभी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए।
1) स्वाभिमान का किसी और से सम्बन्ध नहीं। अपने पद का सम्मान बनाये रखने के लिए उस पद के अयोग्य काम नहीं करना।
2) स्वाभिमान बुरी चीज़ नहीं। लेकिन पद का भी तो मान रखना होता है। स्वाभिमान और अभिमान के बीच पतली/ टेड़ी मेड़ी विभाजन रेखा होती है। स्वाभिमान से कब हम अभिमान में चले जाते हैं, पता ही नहीं चलता। इस अपेक्षा से इसे मान के अंदर रखा है।
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मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने मान का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में मान की अपेक्षा नहीं करना चाहिए तथा कभी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए।
1) ‘स्वाभिमान… स्व-अपेक्षित’; Iska meaning clarify karenge, please ?
2) ‘स्वाभिमान’ me bhi kya ‘Maan’ aata hai aur kya ‘स्वाभिमान’ rakhna buri cheez hai ?
1) स्वाभिमान का किसी और से सम्बन्ध नहीं। अपने पद का सम्मान बनाये रखने के लिए उस पद के अयोग्य काम नहीं करना।
2) स्वाभिमान बुरी चीज़ नहीं। लेकिन पद का भी तो मान रखना होता है। स्वाभिमान और अभिमान के बीच पतली/ टेड़ी मेड़ी विभाजन रेखा होती है। स्वाभिमान से कब हम अभिमान में चले जाते हैं, पता ही नहीं चलता। इस अपेक्षा से इसे मान के अंदर रखा है।
Okay.