मुनि के लिये आहार बनाने में दोष है पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावों की शुद्धता रखकर आहार बनाने का मतलब ये नहीं होगा की आहार मुनि के लिये बनाया गया है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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यह कथन सत्य है कि मुनि के लिए आहार बनाने में दोष है पर द़व्य,क्षेत्र,काल और भावों की शुद्धता रखकर आहार बनाने का मतलब ये नहीं होगा कि मुनि के लिए बनाया गया है।
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यह कथन सत्य है कि मुनि के लिए आहार बनाने में दोष है पर द़व्य,क्षेत्र,काल और भावों की शुद्धता रखकर आहार बनाने का मतलब ये नहीं होगा कि मुनि के लिए बनाया गया है।
Can it’s meaning be explained please?
शुद्ध भोजन अपने लिए बनाओ और उसमें से यदि उचित भाग मुनि को दे दो तो मुनि को दोष नहीं लगेगा न ।
Okay.