मूर्ति की वीतरागता

अकलंक स्वामी ने मूर्ति पर धागा, उन्हें परिग्रही बनाने के लिये ड़ाला था सो उसकी पूज्यता नहीं रही ।
अभिषेक करते समय कपड़ा रह जाय तो भी पूज्य ।
भावों का महत्व ।

मुनि श्री सुधासागर जी

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One Response

  1. आत्म साधना के द्वारा राग-द्वेष को नष्ट कर दिया है उसे वीतरागी कहते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अकलंक स्वामी ने मूर्ति पर धागा डाला था उन्होने परिग़ही बनाने के लिए डाला था सो उसकी पूज्यता नहीं रही ।

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